भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी की भारी बहूमत से जीत होगी – भाजपा का दावा

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कांकेर। सर्व आदिवासी समाज द्वारा गांव-गांव सें प्रत्याशी उतारने की घोषणा को कांकेर विधायक शिशुपाल शोरी द्वारा भाजपा की चाल बताये जाने पर भारतीय जनता पार्टी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी, जिलाध्यक्ष सतीश लाटिया, सांसद मोहन मण्डावी, पूर्व विधायकगण देवलाल दुग्गा, सुमित्रा मारकोले, ब्रह्मानंद नेताम, भोजराज नाग  ने पलटवार करते हुए कहा है कि सर्व आदिवासी समाज की चुनाव लड़ने की मंशा बताती है कि आदिवासी समाज कांग्रेस सरकार से कितना नाराज है। अपने आप को आदिवासी हितैशी मानने वाली पार्टी कांग्रेस ने अभी तक आदिवासियों के उत्थान के लिए न कोई योजना बनाई और न ही उनके हित के लिए कार्य किया है। शोरी द्वारा भाजपा को आदिवासी विरोधी बताने पर उन्होंने  कहा कि भारत में पहली बार जनजातिय कार्य मंत्रालय का गठन आजादी के बाद किसी ने किया तो वो भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी बाजपेयी की एनडीए सरकार ने किया। कांग्रेस के नेताओं को तो आदिवासियों की कभी चिंता थी ही नही। उन्होंने शिशुपाल शोरी द्वारा भानुप्रतापपुर विधानसभा को कांग्रेस का परंपरागत सीट बताने पर इसे कांग्रेस द्वारा लोकतंत्र का माखौल उड़ाने जैसा बताया है। लोकतंत्र में जनता फैसला करती है कि किसे वोट देना है कोई सीट किसी की परंपरागत नही होती। उन्होंने शिशुपाल शोरी से सवाल किया है कि भानुप्रतापपुर यदि कांग्रेस की परंपरागत सीट है तो क्या भाजपा या अन्य पार्टियां वहां से चुनाव ही न लड़े? विधायक शिशुपाल शोरी के बयान से ऐसा लगता है कि कांग्रेस भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट को अपनी बपौती मान कर चल रही है। शोरी एक भी योजना या काम गिना दे जो आदिवासी के हित व उत्थान के लिए कांग्रेस ने बनाई हो। पिछले 15 वर्ष में भाजपा के शासनकाल में राज्य भर में हुर्ह चहूंमुखी विकास और विशेषकर भाजपा द्वारा बनाये गये उन योजनाओं को जिससे अनुसूचित जनजाति, जाति व पिछड़ा वर्ग का उत्थान संभव हुआ है उसका अध्ययन करने की जरूरत श्री शोरी को है । शोरी कलेक्टर रहे फिर भी उनको जानकारी का अभाव है कि आदिवासी समाज को पहले वनवासी या जनजाति कहकर ही पुकारा जाता था । आदिवासी शब्द का प्रयोग 1930 के आसपास संभवतः महात्मा गांधी या ठक्क्रर बापा ने शुरू किया। ये भाजपा की ही सरकार थी जिसने आदिवासियों को 32 प्रतिशत आरक्षण दिया और 2012 से 2018 तक निरंतर हाईकोर्ट में इस आरक्षण का बचाव भी किया परंतु कांग्रेस सरकार ने कोर्ट में आरक्षण बचाने के लिए कोई ठोस प्रयास नही किया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पिछड़े वर्ग को भी आबादी के अनुपात में आरक्षण देने के बजाय अपने ही आदमी से हाईकोर्ट में स्टे लगवा कर पिछड़ा वर्ग को उनके हक से वंचित रखा और स्टे लगवाने वाले को कबीर शोध पीठ के अध्यक्ष पद से नवाजा। कांग्रेस के कथनी और करनी में जमीन आसमान का फर्क शुरू से रहा है । सत्ता मे आने के बाद से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित उनके विधायक जनता को वादों का लालीपाप पकड़ाने का काम कर रहे है। धरातल में विकास का कोई भी कार्य नही हो रहा है। शोरी का ये कहना कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत रखा गया पर उन्होंने कहा कि तेलंगाना व तमिलनाडू में आरक्षण की अधिकतम सीमा 66 प्रतिशत से उपर है और वहां सरकार ने विधानसभा में अध्यादेश लाकर आरक्षण दिया है और तो अब तेलंगाना सरकार ने 10 प्रतिशत गरीब सवर्णो को भी आरक्षण देने का फैसला किया है । इस प्रकार से तेलंगाना में 77 प्रतिशत तक आरक्षण मिल रहा है फिर छत्तीसगढ़ सरकार सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर प्रदेश के आदिवासियों को बरगला क्यों रही है?  उन्होंने एक स्वर में कहा कि भानुप्रतापपुर विधानसभा की जनता उपचुनाव में कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए तैयार बैठी है और वहां भाजपा प्रत्याशी की भारी बहुमत से जीत दर्ज होगी।

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