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नोट में यह भी कहा गया है कि कोर्ट के डेकोरम के मुताबिक, संबोधन के लिए ‘सर’ सहित किसी भी अन्य शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है।
बता दें कि इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट में रहते समय भी साल 2009 में जस्टिस मुरलीधर ने सभी वसीलों से कहा था कि वे उन्हें ‘यॉर लॉर्डशिप’ कहकर संबोधित न करें। वहीं, मार्च 2020 में उन्होंने पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के वकीलों को भी ऐसा ही कहा था।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने साल 2006 में कहा था कि जजों को माय लॉर्ड या फिर यॉर लॉर्डशिप कहे जाने में भारत के औपनिवेशिक काल की झलक दिखती है। बीते साल जुलाई में, राजस्थान हाई कोर्ट ने भी वकीलों से कहा था कि वे जजों को माय लॉर्ड और यॉर लॉर्डशिप कहकर संबोधित न करें। एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जजों को सम्मानजनक तरीके से संबोधित किया जाना चाहिए लेकिन उन्हें माय लॉर्ड, यॉर लॉर्डशिप या यॉर ऑनर ही कहना जरूरी नहीं है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बावजूद कई हाई कोर्टों में जजों को अब भी माइलॉर्ड कहकर संबोधित किया जाना जारी है।